
जब अमेरिका ने ऐलान किया कि भारत पर 27 अगस्त 2025 से 50% टैरिफ लगेगा, तो कई फैक्ट्रियों में “अब तनख्वाह कैसे दूँ?” वाले सीन शुरू हो गए। लेकिन मोदी जी, गुजरात की धरती से, सीना ठोककर बोले – “हम झटके झेल लेंगे, स्वदेशी हमारा कवच है!”
अब ज़रा देखिए, कैसे आत्मनिर्भर भारत इस ताज़ा झटके का ‘स्वदेशी झप्पड़’ से स्वागत कर रहा है:
1. आउटलुक में सुधार: विदेशी निवेशकों को ‘विश्वास का बूस्टर डोज़’
रेटिंग एजेंसी S&P ने 18 साल बाद भारत की रेटिंग अपग्रेड कर दी है। फिच भी कह रहा है – “टैरिफ़ तो लगेगा, पर GDP पर असर मामूली होगा”। यानी झटका लगेगा, पर अमृतकालिक असर नहीं।
अनुमान: भारत की ग्रोथ 6.5% बनी रहेगी।
2. बड़ा घरेलू बाज़ार: “बाहर वाले रूठे तो क्या हुआ, अपने लोग कम हैं क्या?”
2023 में भारत की ग्लोबल खपत में हिस्सेदारी 9% थी, और 2050 तक यह 16% होने वाली है। “अपने देश में ही इतना माल बिक सकता है कि बाहर वालों की टैरिफ़ टैगनी भी फेल हो जाए!”
3. जीएसटी कलेक्शन का रिकॉर्ड: सरकार की तिजोरी में झन-झन झनकार
मई 2025 में 2 लाख करोड़ रुपये से ऊपर का GST कलेक्शन हुआ। इससे पहले अप्रैल में भी रिकॉर्ड बना। यानी देशवासी टैक्स दे रहे हैं, सरकार की तिजोरी फुल है – अमेरिका को भले टैरिफ़ की चिंता हो, हमें नहीं।
4. महंगाई काबू में: “प्याज़ महंगी नहीं, विदेश नीति थोड़ी भारी”
एडीबी का कहना है – महंगाई 3.8% रहेगी और अगले साल भी RBI के टारगेट रेंज में बनी रहेगी। जुलाई में खुदरा महंगाई 1.55%, जो पिछले 8 साल का सबसे कम है।
ट्रंप जी, इंडिया में तो टमाटर-प्याज भी कूल हैं।

5. इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस: “असली आत्मनिर्भरता तो सड़क-पुल से आती है”
सरकार ने बिना ब्याज के 1.5 लाख करोड़ रुपये राज्यों को दिए हैं ताकि इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारा जा सके। यानी अमेरिका की सड़कों पर टैक्स, और भारत की सड़कों पर तरक्की।
बोनस स्वदेशी ज्ञान: “जापान का प्रोडक्शन भी स्वदेशी है – अगर पसीना देसी बह रहा हो”
मोदी जी की ‘स्वदेशी’ की परिभाषा ट्रेंड में है:
“पैसा किसका है, मुझे फर्क नहीं पड़ता… अगर पसीना देशवासियों का है, तो वो स्वदेशी है।”
अब इस फिलॉसफी को कहें क्या? बुद्धा मीट्स बिजनेस मैनेजमेंट?
अमेरिका का टैरिफ़ तो आ सकता है, लेकिन भारत के “आत्मबल” को टैक्स नहीं किया जा सकता
दुनिया टैरिफ़ लगा सकती है, लेकिन भारत ने आत्मनिर्भरता को अपनी ढाल बना लिया है। और जब गुजरात मॉडल से लेकर जीएसटी मॉडल तक, सब एकजुट हों — तो टैरिफ़ भी सोचता है, “क्या मैंने सही देश को चुना?”
